Saturday, June 14, 2008

चलो फिर से मोहबत की शुरुआत करते हैं....
आँखों की लुक्का छिप्पि को फिर से तसलीम करते हैं...

तुम फिर से वहीं किसी और का इंतज़ार करना...
जिस रह से हम अक्सर गुजरा करते थे.....

हम वो काली बिंदी फिर से यूँ ही लगा लेते हैं.......
जिसे देखकर तुम मुस्कुरा दिया करते थे....

तुम डेस्क पर फिर से वही किताब भूल जाना...
. जिसके पन्नो पर तुम हमारा नाम लिखा करते थे..

हम सीढ़ियों पर वही स्कार्फ फिर से भूल जाते हैं...
जिसे लौटते वक़्त तुम मेरे हाथों को हल्के से छुआ करते थे...

तुम केंटिन की टेबल पर फिर से वही धुन बजाना...
जिसके बोल हमारा नाम पुकारा करते थे....

वो प्यार जो छुता था पहले बिन बोले ही...
आओ उसी रेशम से फिर से जाल बुनते हैं....

चलो फिर से मोहब्बत की शुरुआत करते हैं...

3 comments:

Piyush k Mishra said...

achha likha hai divya.

mohabbat ki shuruaat karte hain....
zakhm film ka gana yaad aata hai-phir se chalo churaayein dil yaar ka....
magar ye wala bhav bahut pasand hai mujhe..isliye achha laga.

तुम फिर से वहीं किसी और का इंतज़ार करना...
जिस रह से हम अक्सर गुजरा करते थे.....

pahli line mein KISI AUR ka prayog....mmmm thoda khatakta hai...maza tab aaye jab aap likhein KISI KA INTEZAR KARNA :)

हम वो काली बिंदी फिर से यूँ ही लगा लेते हैं.......
जिसे देखकर तुम मुस्कुरा दिया करते थे....

तुम डेस्क पर फिर से वही किताब भूल जाना...
. जिसके पन्नो पर तुम हमारा नाम लिखा करते थे..

हम सीढ़ियों पर वही स्कार्फ फिर से भूल जाते हैं...
जिसे लौटते वक़्त तुम मेरे हाथों को हल्के से छुआ करते थे...

yaar nostalgic hona bada udaas karta hai.magar badi positive nostalgia hai isiliye maza aa raha hai :)

तुम केंटिन की टेबल पर फिर से वही धुन बजाना...
जिसके बोल हमारा नाम पुकारा करते थे....

khoobsoorat.bas.itna hi.kisi ki dhun mein apna nam sunna...

वो प्यार जो छुता था पहले बिन बोले ही...
आओ उसी रेशम से फिर से जाल बुनते हैं.

resham si komalta...bin bole pyaar...
aameen!!

Divya said...
This comment has been removed by the author.
Divya said...

thanks piyush,ek kahani thi jis se aap ko yadon me lekar aaye hum,hum kamyab ....
aap ka shukriya ki aap itna waqt dete ho