Wednesday, June 18, 2008

sath

एक अँधा कुआँ है ये इंतज़ार,
मैं झाँकती रहती हूँ.......
कितने ही लम्हे चुन चुन कर डालती हूँ,
पर इस तन्हाई को कुछ महसूस नही होता...

तुम्हारी वो एक कसम,
ना जाने कौन सी उमर ले कर आई है...
कितना भी निचोड़ूं,
धड़कन का कतरा बंद नही होता.....

ये कैसी ज़िद है?
मैं क्यों तुम्हारा प्यार तौलती हूँ...
जंगली फूलों से खिल ही आते हैं,
साथ की यादों का मौसम कभी गुम ही नही होता..

2 comments:

Khoobsurat sapne aur Masoon khayal said...

hmmm yahan hain aap....
khoob likhti hain.....
bahut khoob.....!

Unknown said...

बहुत अच्छी रचना.. बधाई..

anilavtaar.blogspot.com