Wednesday, July 2, 2008

Ek nazm...zindagi...wali

तुम ज़िंदगी वाली एक नज़्म लिखना,
मैं उसमे कहीं भी शामिल ना रहूं..........
उसमे मेरा मत तुम ज़िक्र लिखना.

इंतज़ार मुझको ना मिले फिर कभी तेरा,
सो चलती फिरती राहों पर...
ना अपनी कोई पहली मुलाकात लिखना.

वस्ल की राह देखता हर रोज़ ये चाँद जलता रहता है,
मेरे उस पुराने घर मे.........
ना कोई खिड़की ना कोई छत लिखना.

चुपचाप बैठी खुद से सवाल करती रहती हूँ,
मुंतज़ीर ना हो जो जवाबों का........
मेरी ऐसी लंबी सी उम्र लिखना.

कितने जमाने बीत गये,रूठ कर जो तुम मुझसे गये,
मुझ मे लम्हों का एहसास ही मर जाए..........
ऐसी कोई प्यारी सी वजह लिखना.

तुम्हारे नाम के हर शख़्श को प्यार से देखती हूँ,
वक़्त कभी भी ना दुहरा पाए...........
ऐसा कुछ अपना अलग सा नाम लिखना.

अपनी बाहों मे खुद को लपेट कर सो जाती हूँ,
तेरे ख्वाबों की यादें भी ना हो.........
मेरी रातों की ऐसी नयी रहगुज़ार लिखना.

तुम लौट आओगे कभी तो,
मर जाए ये आस भी..............
मेरी ज़िंदगी मे बस इतना सा आराम लिखना.



तुम ज़िंदगी वाली एक नज़्म लिखना...

2 comments:

Unknown said...

tum laut aao kabhi to,
mar jaye ye aas bhi.....
meri zindagi mein itna sa araam likhna

es teen lines mein kuch alag si baat hai..it potrays the pain and hope of relieve from the beloved simultaneosly..
Two contrast feelings expressed through such simple lines..amazing

Unknown said...

one thing i would like to say about it .you have faith but try to avoid it.it would not be easy,stunning girl.