Monday, April 18, 2011

एक ख्याल ही तो हूँ...

एक ख्याल ही तो हूँ
बदल ही जाऊँगा
जेहन में कभी
मिसरी सा घुल जाऊँगा
कभी कॉफ़ी का कड़वा रंग याद दिलाऊँगा

एक ख्याल ही तो हूँ
ग़ुम हो जाऊँगा
बादलों सा
साथ की बारिशें याद दिलाऊँगा

एक ख्याल ही तो हूँ
सुनाऊँगा ख्वाबों की सलवटें
कभी काजल तेरा
तेरे मुन्गिया होठों पे रख जाऊँगा

एक ख्याल ही तो हूँ
कभी कभी यूँ ही
गुलमोहर के मौसम सा
बस गुजर जाऊँगा
और कभी तेरा इमान बनकर
तेरी शख्सियत से चिपक जाऊँगा
एक ख्याल ही तो हूँ
बदल ही जाऊँगा

1 comment:

veena said...

It's excellent.. What a expression!!! I can never match it.. Few words are similar but mine is referring to life in pandemic.. And yours is a deep love poem.. 👍👍👍