Sunday, July 31, 2011

AAZ

कुछ पन्ने तमन्नाओं के चलो आज हवाओं में उड़ाती हूँ,
एक नदी के किनारे.....
सूरज के सोने के सहारे,
मेरे चेहरे के तिल को ढूँढना....
और जब बुझ जाये वो सूरज भी,
तो अपने होठों से मेरे उस तिल को चुनना...

एक जुस्तजू ज़िन्दगी की चलो आज तुमको बताती हूँ,
बारिशों के इस नमसे मौसम में...
हाथ थामे तेरा चलना सडको के किनारे-किनारे,
ऐसी ही हर शाम....
सुबह के हर ख्वाब में मैं बुलाती हूँ.....

एक किस्सा बचपन का भी तुम्हे आज सुनाती हूँ,
चाँदनी कातती वो चाँद वाली बुढिया....
रात की परियां,
और सुबह के सितारे...
संभालें से हैं मेरी आँखों में सारे,
बस एक नींद है जो तेरे आगोश बिन ख़ाली है.