Thursday, December 22, 2011

kaisa hota??????

सर्दी की  वो सुबह काश उग आती,
आज  के उगते सूरज के साथ.
हरसिंगार  के उन फूलों के रंग,
खिल कर आते मेरी खिड़की के परदे पर.

धूप में बिछी सबके हिस्से की चादर,
और फिर सबके हिस्से की धूप..
आज मेरे हिस्से में आते तो,
कैसा  होता???

वो जलती हुई एक पूरी रात,
बड़े से आग  के घेरे में,
कितनी बातें कितनी  कहानियां,
और न जाने कितने ही चाय के प्याले..
coffee  house के इस ठिठुरते अकेलेपन,
उस चाय की गर्मी मिलती तो,
कैसा होता???

फिर वो सुबह आती,
आँगन में धूप उलीच  कर जाती,
और मैं थोड़ी और सर्दियाँ चुन लेती तो,
 कैसा होता???























Monday, December 5, 2011

Kyon

तुम कहते हो तुम मेरे हो....
फिर  ख्वाहिशों की लिस्ट से तेरा नाम क्यों नहीं मिटता .
हर रोज़ तू मिलता हर रोज़ बिछड़ता है...
और साथ मेरे चलते हैं,तू भी और तन्हाई भी.








Sunday, August 7, 2011

::Ek kahani::

एक कहानी,
भूली सी,
भींगती सी,ठिठुरती सी,
मेरे दरवाज़े पर दस्तक देती है,

मैं छुप जाती हूँ,
रगों में दौड़ते से शोर को कसकर
मुट्ठी में बंद कर देती हूँ,
कहानी
वो नहीं थकती,
चिल्ला-चिल्ला कर,
बीते लम्हों को इकट्ठा कर लेती है.

फिर एक शक्श रु-ब-रु होता है,
मैं उसे नहीं जानती,
छूकर देखती हूँ,
फिर पहचान लेती हूँ,

वो मेरा ही मारा हुआ हिस्सा है,
जो आज आईने से चिपक-कर,
मेरी पर्दानशीं तन्हाई को,
नंगा करता है.

मैं हर बार, 
आईने का रुख बदल देती हूँ
बरसे न जहाँ पानी,
 ऐसा कोई शहर ढूंढ लेती हूँ,

लुटा कर अपनी पहचान,
मैं रोज़ सफ़र तय करती हूँ,
पर इस बदकिस्मती का क्या करूँ मैं,
अपने पते पर,
आज भी उसका ही नाम लिखती हूँ.


तुम आकर इस कहानी को समझा जाना,
भींगती ठिठुरती रहती है,
कफ़न वाली चादर,
तुम याद से इसको पहना जाना. 


Monday, August 1, 2011

Pahadon mein ek nazm.....

पहाड़ों की पगडंडियों पर,
मैं तुम्हारा हाथ थामे थामे चलती हूँ...
और तुम अंजलियों में मुस्कराहट भरकर,
मुझ पर उड़ेलते जाते हो.

पास आते बादल का एक टुकड़ा, 
मैं उसको छूने की जिद करती हूँ...
तो तुम मेरे दुपट्टे के कोर से,
न जाने कितने रंगीन ख्वाब बांध देते हो.


जब मैं थक कर ,
सड़क किनारे बैठ जाती हूँ...
तुम हलके से मुस्कुरा कर,
मेरे पैरों तले अपना साथ ड़ाल देते हो.


मैं अपने गुलाबी हाथों को,
तुम्हारी pocket में गर्म करती रहती हूँ....
और तुम बड़ी सिद्दत से,
अपनी आग मेरे सीने में ड़ाल देते हो.


मैं कुछ न कहूँ,
चुपचाप जब तुमको देखा करूँ...
तुम अपनी ही कहानी कोई,
अपने होठों से मेरे होठों पर लिख देते हो.


गुस्सा होकर मैं,
तुम्हारा हाथ झटके से छोड़ देती हूँ...
और तुम बस मेरा नाम लेकर,
सर्द हवा से मेरे सीने में भर आते हो.

तुमसे झूठ भी बोलती हूँ,
नहीं मानती की ये प्यार है...
और तुम बस 'पगली' बोलकर,
मेरे झूठ पर मुस्कुरा भर देते हो.

Sunday, July 31, 2011

AAZ

कुछ पन्ने तमन्नाओं के चलो आज हवाओं में उड़ाती हूँ,
एक नदी के किनारे.....
सूरज के सोने के सहारे,
मेरे चेहरे के तिल को ढूँढना....
और जब बुझ जाये वो सूरज भी,
तो अपने होठों से मेरे उस तिल को चुनना...

एक जुस्तजू ज़िन्दगी की चलो आज तुमको बताती हूँ,
बारिशों के इस नमसे मौसम में...
हाथ थामे तेरा चलना सडको के किनारे-किनारे,
ऐसी ही हर शाम....
सुबह के हर ख्वाब में मैं बुलाती हूँ.....

एक किस्सा बचपन का भी तुम्हे आज सुनाती हूँ,
चाँदनी कातती वो चाँद वाली बुढिया....
रात की परियां,
और सुबह के सितारे...
संभालें से हैं मेरी आँखों में सारे,
बस एक नींद है जो तेरे आगोश बिन ख़ाली है.

Wednesday, April 20, 2011

मेरे छोटे शहर की बातें.....

फिर याद आती हैं,
गुनुनाती हैं,
मेरे छोटे से शहर की लम्बी सी गर्मियां...
जब मेरे चंदा मामा सोये कदम्ब की डाली के ऊपर,
और सुबह सूरज का कोई और कोना ढूंढना....


घर के तोते से पहले जागना,
भूख लगे तो कुछ बासी सा टूंगना...

छ्प छप कर आँगन के नलके पर नहाना,
फिर तौलिये के लिए भाई से झगड़ना...

बस्ते में किताबों की जगह अमियाँ भर कर ले जाना,
रास्तों में रुक रुक कर फिल्मों के पोस्टर्स देखना....

साइकिल पर चढ़ना और गिरकर ही नीचे उतरना,
दौड़ दौड़ कर हर कम पूरा कर लेना....

सन्डे की सुबह होमवर्क जल्दी ख़त्म कर रखना,
और फिर शाम तक दूरदर्शन पर सिनेमा के नाम का इंतज़ार करना...

माँ का डांटना हर बार की पढना कितना जरूरी है,
हमारा सोचना जीने के लिए खेलना भी तो जरूरी है.....


Tuesday, April 19, 2011

यूँ ही..

ज़िन्दगी अब किसी शाम के अक्श में नहीं ढल पाती.....
चाँद के रोशन से चाक पर खुद ही बिखरती जाती है

आँखों में किसी सेहर की सूरज की तमन्ना नहीं छुपती....
रातों के ख्वाबों में कोई बिंदिया सूरज वाली बुन सी जाती है

पलकें पिछली यादों के झिलमिलाते पानी से निखर ही नहीं पाती....
धुप तेज़ हो जैसे,जेठ की खुशियों की यूँ ही झपकती जाती है

कोई आकर पूछे मुझ से मेरा नाम क्यों??
जब तुम्हारे आने की आहटें,होने की सिलवटे सब उँगलियाँ लम्हों पर लिखती जाती हैं.

Monday, April 18, 2011

कोई बहाना तू ढूँढ लेना

एक वादा
एक कहानी
कोई भी बहाना ढूँढ लेना
कभी जब चाँद डूबे
मेरी भोर से भरी आँखों में
तुम नए से किसी ख्वाब का बहाना
मेरे सिरहाने रख जाना
सुबह जो धुलती सी हो
मेरे गिले बालों की बूंदों से
ऐसी किसी धुप का
सूरज तुम अपनी किस्मत में बुन लेना
चमकती सी मेरी चूड़ियाँ
तेरे तकिये के कोर पे रखा
चाँद हो जैसे
ऐसी रतजगों की कोई
प्यारी सी वजह ढूँढ लेना
मेरे हर कदम की कहानी
और हर बार थम जाने का ये शोर
तेरे आँखों के दायरे में
सांझ बन कर डूबे
ऐसी परिधि बुन लेना
कोई बहाना तुम ढूँढ लेना

एक ख्याल ही तो हूँ...

एक ख्याल ही तो हूँ
बदल ही जाऊँगा
जेहन में कभी
मिसरी सा घुल जाऊँगा
कभी कॉफ़ी का कड़वा रंग याद दिलाऊँगा

एक ख्याल ही तो हूँ
ग़ुम हो जाऊँगा
बादलों सा
साथ की बारिशें याद दिलाऊँगा

एक ख्याल ही तो हूँ
सुनाऊँगा ख्वाबों की सलवटें
कभी काजल तेरा
तेरे मुन्गिया होठों पे रख जाऊँगा

एक ख्याल ही तो हूँ
कभी कभी यूँ ही
गुलमोहर के मौसम सा
बस गुजर जाऊँगा
और कभी तेरा इमान बनकर
तेरी शख्सियत से चिपक जाऊँगा
एक ख्याल ही तो हूँ
बदल ही जाऊँगा