Sunday, August 7, 2011

::Ek kahani::

एक कहानी,
भूली सी,
भींगती सी,ठिठुरती सी,
मेरे दरवाज़े पर दस्तक देती है,

मैं छुप जाती हूँ,
रगों में दौड़ते से शोर को कसकर
मुट्ठी में बंद कर देती हूँ,
कहानी
वो नहीं थकती,
चिल्ला-चिल्ला कर,
बीते लम्हों को इकट्ठा कर लेती है.

फिर एक शक्श रु-ब-रु होता है,
मैं उसे नहीं जानती,
छूकर देखती हूँ,
फिर पहचान लेती हूँ,

वो मेरा ही मारा हुआ हिस्सा है,
जो आज आईने से चिपक-कर,
मेरी पर्दानशीं तन्हाई को,
नंगा करता है.

मैं हर बार, 
आईने का रुख बदल देती हूँ
बरसे न जहाँ पानी,
 ऐसा कोई शहर ढूंढ लेती हूँ,

लुटा कर अपनी पहचान,
मैं रोज़ सफ़र तय करती हूँ,
पर इस बदकिस्मती का क्या करूँ मैं,
अपने पते पर,
आज भी उसका ही नाम लिखती हूँ.


तुम आकर इस कहानी को समझा जाना,
भींगती ठिठुरती रहती है,
कफ़न वाली चादर,
तुम याद से इसको पहना जाना. 


Monday, August 1, 2011

Pahadon mein ek nazm.....

पहाड़ों की पगडंडियों पर,
मैं तुम्हारा हाथ थामे थामे चलती हूँ...
और तुम अंजलियों में मुस्कराहट भरकर,
मुझ पर उड़ेलते जाते हो.

पास आते बादल का एक टुकड़ा, 
मैं उसको छूने की जिद करती हूँ...
तो तुम मेरे दुपट्टे के कोर से,
न जाने कितने रंगीन ख्वाब बांध देते हो.


जब मैं थक कर ,
सड़क किनारे बैठ जाती हूँ...
तुम हलके से मुस्कुरा कर,
मेरे पैरों तले अपना साथ ड़ाल देते हो.


मैं अपने गुलाबी हाथों को,
तुम्हारी pocket में गर्म करती रहती हूँ....
और तुम बड़ी सिद्दत से,
अपनी आग मेरे सीने में ड़ाल देते हो.


मैं कुछ न कहूँ,
चुपचाप जब तुमको देखा करूँ...
तुम अपनी ही कहानी कोई,
अपने होठों से मेरे होठों पर लिख देते हो.


गुस्सा होकर मैं,
तुम्हारा हाथ झटके से छोड़ देती हूँ...
और तुम बस मेरा नाम लेकर,
सर्द हवा से मेरे सीने में भर आते हो.

तुमसे झूठ भी बोलती हूँ,
नहीं मानती की ये प्यार है...
और तुम बस 'पगली' बोलकर,
मेरे झूठ पर मुस्कुरा भर देते हो.