Sunday, August 7, 2011

::Ek kahani::

एक कहानी,
भूली सी,
भींगती सी,ठिठुरती सी,
मेरे दरवाज़े पर दस्तक देती है,

मैं छुप जाती हूँ,
रगों में दौड़ते से शोर को कसकर
मुट्ठी में बंद कर देती हूँ,
कहानी
वो नहीं थकती,
चिल्ला-चिल्ला कर,
बीते लम्हों को इकट्ठा कर लेती है.

फिर एक शक्श रु-ब-रु होता है,
मैं उसे नहीं जानती,
छूकर देखती हूँ,
फिर पहचान लेती हूँ,

वो मेरा ही मारा हुआ हिस्सा है,
जो आज आईने से चिपक-कर,
मेरी पर्दानशीं तन्हाई को,
नंगा करता है.

मैं हर बार, 
आईने का रुख बदल देती हूँ
बरसे न जहाँ पानी,
 ऐसा कोई शहर ढूंढ लेती हूँ,

लुटा कर अपनी पहचान,
मैं रोज़ सफ़र तय करती हूँ,
पर इस बदकिस्मती का क्या करूँ मैं,
अपने पते पर,
आज भी उसका ही नाम लिखती हूँ.


तुम आकर इस कहानी को समझा जाना,
भींगती ठिठुरती रहती है,
कफ़न वाली चादर,
तुम याद से इसको पहना जाना. 


No comments: